गठबंधन की गाठें 

गठबंधन, जैसा कि देश का हर ख़ासो-आम प्राणी को मालूम है, दो जुदा-जुदा छोरों के पास आकर गाँठ में बंध जाने से बनता है. जैसे छोरा-छोरी प्यार-मुहब्बत के नाम पर मंडप में धोती-दुपट्टे के छोरों का गठबंधन करवाते हैं. स्वार्थ, मौक़ा-परस्ती, सत्ता-लोलुपता, अधिकार का विस्तार आदि बाक़ी वे कारण हैं जिनसे दो अलहदा चीजों के छोर पास आकर गठबंधन में बंधने को आतुर होते हैं. प्यार की वजह से हो या ऊपर बताई गई किसी और वजह से, गठबंधन में दो प्रतीकात्मक छोरों पर रिश्ते का आरोप लगा कर गाँठ बाँध दिया जाता है. लीजिये साहब, पड़ गई रिश्ते में गाँठ, यानी गठबंधन की पवित्र भावना के साफ़ उलट मामला. पर गौर कीजिए तो शादी समेत गठबन्धन कहे जाने वाले सभी रिश्तों में शुरू से ही कुछ गांठें मौजूद रहती हैं और गठबंधन की पूरी उम्र लेकर भी नहीं खुलतीं.
गठबंधनातुर व्यक्ति की गाँठ भरी-पूरी होनी चाहिए. मुहावरे वाली ये गाँठ गठरी से तालुक रखती है. अगर आप अक्ल के अंधे भी हों पर गाँठ के पूरे हों तो आपसे गठबंधन करने को उत्सुक बहुतेरे मिलेंगे. शर्त इतनी है कि गाँठ ढीली करने में आपको संकोच न होता हो. पर अक्सर ऐसा भी होता है कि आप किसी से गठबंधन करने के इरादे से गांठ ढीली किये बैठे रहे और वो किसी रक़ीब या विरोधी के दुपट्टे से जा बंधा. ऐसी स्थिति में आप ये मान लें और खूब प्रचार करें कि आपके साथ हुआ होता तो गठबंधन पवित्र और ऊंचे आदर्शों के हाथों सम्पन्न होता, पर ये वाला जो हुआ है, कुत्सित, अनैतिक और अवसर वादी शक्तियों की वजह से हुआ है.
वैवाहिक गठबंधन की परम्परा हमारे यहाँ पुरानी पड़ने के बावजूद अभी ज़ारी है. इसके लिए हर तबका अपनी गठरी उलीचने के लिए तत्पर रहता है. पहले तो गठबंधन आयोजित करने में ही गाँठ में धरा सारा माल निकल जाता है, आगे नई-नई गाँठ बांधे इतराते हुए बैंकाक या गोवा के हनीमून में. बाकी ज़िन्दगी बंधी हालत में ही रिसती हुई गठरी को सम्हालते- सहलाते बीतती है. इसलिए इधर कुछ ऐसे गठबंधन प्रचलन में आ गए हैं जिसमें परम्परा को अंगूठा दिखा कर दो समझदार स्त्री-पुरुष आपस में एक ढीली सी गाँठ बाँध कर साथ रहने लगते हैं और जब जी चाहे खोल कर अलग रास्तों पर चल देते हैं. जहां तक समाज का सवाल है वो अपने नैतिक-मूल्यों की जकड़ ज़रा भी ढीली करने को तैयार नहीं. गठबंधन तो मज़बूत और पक्का होना, चाहे गाँठ गठबंधन में बंधे प्राणियों के गले में फंस कर दम ही घोंट दे.
यही गठबंधन अगर राजनीति के मंडप में संपन्न हो तो सदा शुभ-लाभ का फल देता है. दो, अधिक या अनगिनत पार्टियां गठबंधन कर साथ रहने को वचन-बद्ध होती हैं. रंग-बिरंगा शामियाना होता है ये, जहां हरा, लाल, केसरिया हर रंग के दुपट्टे आपस में ढीली, कसी या फिसलती गांठें बाँध कर या बंधे होने का भ्रम पैदा कर सत्ता के आंगन में ‘हम साथ साथ हैं- की धुन पर नाचते रहते हैं. ज़ाहिर है गठबंधनोपरांत ये लोग घर-बिस्तर के धर्म निभाने के अलावा हमाम में भी मुहावरे के अनुरूप ही नहाते हैं. गठबंधन वाली सरकार देश की गठरी के लिए शुभ नहीं मानी जाती, क्योंकि इसमें गठरी खोलने का हक रखने वाले कई प्रधान, मुख्य और बाक़ी मंत्री होते हैं. हालांकि ये एक भ्रम भी हो सकता है. कई बार अकेली पार्टी की सरकार इतनी दबंग होती है कि न केवल देश की पूरी गठरी ही पार कर देती है बल्कि जनता की जेबों पर भी हाथ साफ़ कर लेती है. उधर गठबंधन वाले एक दुसरे पर नजर रखे और पोल खोलते न्यूनतम साझा कार्यक्रम के दायरे में ही खा पाते हैं.
गठबन्धनों ने हमारे देश को ढेरों सरकारें और उससे कहीं अधिक प्रधानमंत्री दिए हैं. इनकी गांठें खुली-खुली सी, खूब लचीली होती हैं. पार्टियों की कुल संख्या से अधिक उनके गठबंधन बनने की संभावना रहती है, यानी दस पार्टियां हों तो उन्नीस गठबंधन बन सकते हैं. मज़बूत गाँठ से दीखते इस बंधन में अपना छोर खोल कर कब दो चार खिसक लें और बाहर आमन्त्रण में लहराते कुछ अन्य दुपट्टों से जाकर बंध जाएँ कह नहीं सकते. कभी यों जी-जान से बंधे थे कि अलग होने को अपना छोर कैंची से काटना पडा था, पर चार साल अलग-अलग लहराने के बाद मौक़ापरस्ती की हवा ने पास लाकर लिपटा दिया तो फिर बंध लिए. इनमें यूपीए और एनडीए दो ज़रा टिकाऊ किस्म के गठबंधन हैं. उधर एक ऐसा महा- गठबंधन भी है जिसमें बंधने को कई छोर लहराते हुए आते हैं पर ऐन गाँठ लगते समय इधर-उधर हो जाते हैं. कभी सत्ता-विभाजन का घेरा ठीक नहीं लगता तो कभी बाहर ताक में लगा कोई दूसरा गठबंधन झांसे की लग्गी से दो तीन दुपट्टों को अपनी ओर खींच लेता है.
शादियों की तरह राजनीतिक गठबंधन का भी एक पीक सीजन होता है. चुनाव-काल नामक इस समय के पहले, दौरान और बाद में कुछ ज़ाहिर किस्म तो कई छुपे हुए गठबंधन कायम होते हैं. इस सीजन में जुदा-जुदा लहराते दो धुर-विरोधी दुपट्टे दिखें तो ये समझना भूल है इनके बीच कोई चुपकी-सी गाँठ नहीं लगी हो सकती. चुनाव के परिणाम आने के बाद एकदम से खुलासा हो जाता है. कहीं अगर चुनी गई सभा त्रिशंकु होकर लटक जाए तो वो गठबंधन का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त आता है. चरमोत्कर्ष की इस अवस्था में हर चुना हुआ बन्दा गठबंधन की एक संभावना होता है. जहां शादी वाले गठबंधन में घोड़ी चढ़ने की परम्परा है, यहाँ गठबंधनातुर खुद ही घोड़े बन कर नीलामी के लिए बाड़ों में खड़े हो जाते हैं. बहुमत-भर घोड़ों की खरीद-बिक्री के बाद सत्ता का जो समीकरण बनता है उसके हिसाब से गठबंधन संपन्न कर लिया जाता है. इस अनुष्ठान में नैतिकता की गुहार का कोरस शहनाई की तरह बजता रहता है और शुद्ध अवसरवाद के हवन-कुंड में नैतिकता और राजनितिक शुचिता की आहुति के बीच गठबंधन कर सत्ता के दीवाने फेरे ले लेते हैं. आगे संसद या विधान-सभा में इनके दाम्पत्य जीवन की छटाओं से मीडिया का कारोबार और जनता का मनोरंजन चलता रहता है.
त्रासदी यही है कि इन घोर अपवित्र गठबन्धनों को आशीर्वाद देने वाले मानस के राजहंस हम ही हैं जिन्हें आशीष दिलवा लेने के बाद चलता कर दिया जाता है. फिर गठबंधन करने वाले कई साल तक छक कर सत्ता के भोज जीमते हैं और शामियानों के बाहर खड़ी जनता को जूठन भी नसीब नहीं होती.

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