Dee Dee Trishanku Par
परसाईजी की एक सदाबहार व्यंग्य रचना है- इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर. भारतीय पुलिस व्यवस्था की परतें उधेड़ती ये फैंटेसी पर बुनी गई रचना हर युग में लेखकों को प्रेरणा देती रही है. मैं भी ये मोह नहीं छोड़ पाया कि इस थीम पर व्यवस्था के किसी और खम्भे को थोड़ा कुरेद कर देखूं (नोचना तो खिसियानी बिल्ली को याद दिलाता और, नोच पाना क्या सचमुच हमारे बस में है?) खैर! त्रिशंकु ग्रह पर सलाहकार की हैसियत से गए दातादीन उर्फ़ डीडी वहां थोड़े ही समय में ही कैसे प्रशासनिक सुधार के ज़रिये पालिसी पैरालिसिस ले आते हैं उसकी कहानी पढ़ कर देखें. (लफ्ज़ के पिछले अंक में प्रकाशित) डीडी त्रिशंकु पर हमारी वसुधैव कुटुम्बकम वाली प्राचीन संस्कृति की महानता पर कौन संदेह करेगा! अर्थात कोई नहीं. अगर कोई करने पर आमादा ही हो तो उसे चुप करने को ये आलेख काफी होगा. सृष्टि के आरम्भ से ही हमारी संस्कृति के कद्रदान पूरे ब्रम्हांड में फैले रहे हैं और हमारी विकसित सभ्यता के डंके पूरे अंतरीक्ष में यों गूंजते रहे हैं कि आकाशीय ‘फ्रेंड-रिक्वेस्ट’ की भरमार से हम परेशान रहे. ज़रा बताईये कि हमारे प्राचीन ग्रन्थों में उड़न-तश्तरियों का ज़िक्र