हमसे ही है दुनिया, हमें ही जीना मुश्किल
दोस्तों, सभी अपनी-अपनी शैली में जीते हैं, पर सलाहें तो ली ही जाती हैं दोस्तों से। हमारी दुनिया तेजी से बदल रही है, हम भी बदल रहे हैं, पर अचानक कहीं ठिठक जाते हैं, रुक कर देखने लगते हैं कि सही रास्ते पर चल तो रहे हैं। अकेलापन है, बेगानापन है, कई बार लगता है हमें कोई समझ नहीं रहा, क्या करें? सलाहें देने वालों, रस्ता दिखाने का दावा करने वालों की कमी नहीं। पर आपका मन भटक जाता है, तय नहीं कर पाते कि क्या सही है क्या गलत । गहरे भारतीय संस्कारों पर कहीं बदलती दुनिया के नए संस्कार पूरी तरह नहीं चढ़ पा रहे। मुश्किल । दुनिया को बदलने के जमाने गए, अब युवा लोग जमाने के सांचों में आसानी से ढल कर अपनी ज़िन्दगी आसान पा रहे हैं। सो दुनिया कुछ अजीब सी शक्तियों के दवाब में अपने आप बदल रही है और कुछ यूं बदल रही है कि बदलने वाले आदर्श के रूप में सामने नहीं आते। हम बदलती दुनिया को देखते परखते धीरे-धीरे खुद ही बदल जाते हैं। इस उलझन से निकलने की ज़रूरत भी महसूस नहीं होती, जबतक हम चारों तरफ़ भरी-पूरी दुनिया में अचानक अकेले पड़ जाते हैं, वरना रफ़्तार हमें सोचने तक का मौका नहीं देती। मैं कुछ ऐसी ही बातें सामने रखूंग