ज़रा चरणों की बात हो जाए- एक पुरानी रचना पर आज भी एकदम प्रासंगिक लग रही है.
अथ चरण-पुराण आम तौर पर चरण शब्द से अर्थ आदमी के शरीर के निचले भाग में पाए जाने वाले बाँस-सरीखे पायों का लिया जाता है जो उपरी धड़ को थामे रहते हैं। ये संख्या में दो होते हैं। अगर किसी वज़ह से ये जोड़ा टूट जाए तो उसकी कसर बांस, बेंत या किसी भी लकड़ी की बैसाखी से पूरी कर ली जाती है. आजकल तो स्टील भी प्रयोग किया जाने लगा है। अवसरानुकूल चरणों को टांग पांव, पैर, टंगड़ी या पाद आदि कहा जाता है। बहरहाल यहाँ चर्चा उस टाँग की नहीं होने जा रही जो टूट जाती है या मार कर तोड़ी जाती है न ही उन पाँवों की जो कुछ प्राकृतिक कारणों से भारी हो जाते हैं, बल्कि उन चरणों की होगी जो छुए, चूमे, पखारे या धो-धो के पिए जाते हैं और अक्सर जिनकी धूलि को माथे पर लगा लिया जाता है. कुछ लोगों को कुछ लोगों के चरण कमल सरीखे लगते हैं. आपकी अपनी आँखों से ऐसा दिखे ये ज़रुरी नहीं, क्योंकि चरण अमूमन एक बदशक्ल-सी चीज़ होते हैं, जिनमें पंखडी, पराग और सुडौल पत्तों का अख्श नहीं मिल सकता. बल्कि ज़्यादा संभावना तो इस बात की है कि वहां बेडौल उँगलियों, गंदे नाखूनों और फटी बिवाईयों का एक वीभत्स-सा कोलाज मिले. ज़ा