एक था गधा उर्फ़ शरद जोशी के नाटक में हम
शरद जोशी का मशहूर नाटक "एक था गधा उर्फ अलादाद खान" की अपनी मंडली के साथ मंच पर प्रस्तुति के बाद एक व्यंग्यात्मक आलेख लिखना बनता था. कुछ देर से सही, लिख पाया . ..... नाटक हमारे लिए कोई अजूबा नहीं था. बाबू-जीवन के हर चरण में कोई न कोई नाटक चलता ही रहता है. अलग से एक नाटक खेलने की ज़रूरत क्यों पड़ी ये एक सवाल है जिसका जवाब अभी ढूँढा जा रहा है. थियेटर किस चिड़िया का नाम है ये हम जानते थे क्योंकि देख रखा था. हमेशा बर्ड-वाचिंग के अंदाज़ में मंडी हाउस के थियेटरों की ओर जाते और अन्य कई चीजों के अलावा नाटक भी देख लेते थे. इतना पक्के तौर पर मालूम था कि इसमें एक मंच होता है जिस पर कुछ लोग नाटकीय अंदाज़ में चलते-बोलते रहते हैं. रटे-रटाए सम्वाद और उसपर से ‘ जो भूले सो याद कराया ’ की सुविधा के साथ विंग्स में छुपा प्रोम्प्टर. ये कौन-सा मुश्किल काम था जब हम जब चाहे बिना स्क्रिप्ट ही बॉस और बीबी दोनों को अपने सहज अभिनय से झूठ सच की सीमा पर भटकाते रहते हैं. वैसे ये नाटक “ एक था गधा उर्फ अलादाद खान ” सोच समझ कर नहीं चुना गया था पर आख़िरकार सटीक साबित हुआ. ये अच्छा रहा कि नाटक क