Posts

Showing posts from February, 2012

कबीरा घिरा बाज़ार से- vyangya

 This is one of my favorite articles published in a family magazine "Vanita" last year. Enjoy... कबीरा घिरा बाज़ार से -कमलेश पाण्डेय मैं निहायत कंजूस, दकियानूस, पिछड़े खयालात का और इन ख़ूबियों की वज़्ह से एक जिद्दी, खड़ूस, नालायक और निकम्मा आदमी हूं। हाल के कुछ सालों में मुझे ये आईना मेरी अपनी ही श्रीमतीजी तक़रीबन रोज़ ही दिखाती रही हैं, हालांकि वो मेरी तारीफ़ में इनमें से एक दो लफ़्ज़ ही कहती हैं, पर उनको बयान करने में वो अपनी ज़ुबान के अलावा चेहरे पर मौज़ूद बाकी अंगों के साथ अपने हाथों का इतना प्रभावी इस्तेमाल करती हैं कि एक ही लफ़्ज़ में ऊपर बताये गये तमाम और कुछ अनकहे और छूट गये विशेषणों का भी लुत्फ़ आ जाता है। कंजूस तो मैं अव्वल दर्ज़े का हूं। बक़ौल श्रीमतीजी, इसकी हद ये है कि महज़ तीन-तीन सौ के सिनेमा टिकट खरीदने के डर से मैं उन्हें हर हफ़्ते सिनेमा नहीं ले जाता। अगर कभी ले भी गया तो वहां केवल सौ-सौ रुपये में मिलने वाले पॉपकार्न और कॉफ़ी नहीं मंगाता। अगर मंगा भी लूं तो मुंह बिचका कर खाता-पीता हूं। उनका खयाल है वो पनियल कॉफ़ी मुझे सिर्फ़ इसलिये कड़वी लगती है कि ये मुझे कही