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आज कुछ मौसम का मिज़ाज और ज़िन्दगी के फलसफे को जोड़ कर देखने की कोशिश

एक मध्यमवर्गी मौसम हवा में खुनकी है . पश्चिमी गडबडियों और पूरबी छेडखानियों से मौसम खामख्वाह खुशगवार हो रहा है . यों दिन भर मौसम कैसा था ये देखने को न फुर्सत थी न मिज़ाज . शाम ढली तो मौसम और घर दोनों ध्यान में आये . अच्छे मौसम को ‘ सेलीब्रेट ’ करने का आम - तौर पर एक ही तरीका आता है मुझे , पर आज घर पर गुरु - वार का शाकाहार और शुष्क - दिवस लागू है . इसलिए मैं साग - पात खाकर ठंढा पानी पी चुका हूँ और सीधा बिस्तर पर आ गया हूँ . मौसम की कारगुजारियों का असर बेडरूम तक भी छाया है . बीबी ने खिड़की खोल दी है जिससे होकर एक ठंढी चुभन से भरी हवा के साथ - साथ कुछ मच्छर भी प्रवेश कर गए हैं . मैं तेज़ पंखा चला कर आगे की सम्भावनाओं पर आपकी कल्पना और मच्छरों की उन्मुक्त उड़ान दोंनों पर ब्रेक लगाने की कोशिश करता हूँ . आपकी कल्पना का तो पता नहीं पर मच्छरों के मामले में नाकामी ही मिलती है . हूँ . लेटते ही पंखे से उठा बवंडर बदन में ठंढी फुरहरी दौड़ने ल