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रूपये -पैसे पर कुछ कहना फिर जुरुरी है....

अथ श्री श्री पैसा पुराण  मैंने एक बात नोट की कि नोटबंदी होते ही नोटों की मांग बहुत बढ़ गई है. आप टोकेंगे कि इसमें नया क्या नोट किया? सीधी - सादी इकोनोमिक्स है. पर मुझे यक़ीन रहा है कि पैसे को आदमी ने खुद ही जन्म दिया, इसीलिए उससे खूब प्यार करता है. प्यार करते-करते उसने इसका एक अदद शास्त्र भी रच डाला. सरकारें इस इकोनॉमिक्स से अपनी कारगुजारियां करती रहीं उधर हर आदमी ने अपना निजी इकोनॉमिक्स और पैसे एक अदद का निजी दर्शन भी सम्हाल कर रखा. पैसे पर ज्ञान को बघार कर या बिन बघारे भी ज्ञानियों ने हर युग में खूब फैलाया. जैसे ऑस्कर वाइल्ड फरमा गए हैं कि जब वे छोटे थे तो सोचते थे कि पैसा बड़ी चीज़ है और बाद में चल कर जब वे बूढ़े हुए तो यकीन हो गया कि वाकई है. इसी सत्य को एक अन्य ज्ञानी यूं कहते हैं कि बिन पैसे के आप जवान तो रह सकते हैं पर बूढ़े नहीं हो सकते. अगर होने पर आमादा ही हुए तो पैसा नहीं पेंशन आपको ठेल कर आगे ले जाएगा. पैसे को अपने-अपने अनुभवों के जरिये पारिभाषित करने की खूब कोशिशें हुई हैं. एक साहब कह गए हैं कि पैसा शक्ति है, आजादी है, सभी पापों का जड़ भी अर्थात सारी दुआओं का निचोड़ है. य