हिंदी व्यंग्य साहित्य पर एक नन्हा-सा विचार


व्यंग्यपथ
- मुझे अक्खा व्यंगिस्तान चाहिए. अपुन सबको व्यंग्य सप्लाई करेगा. एकदम सौ टका टंच माल.
- जा जा! सौ टका टंच माल तो बस भोपाल से अपना ज्ञानू भाई सप्लाई करता. तेरे पास किदर है खालिस माल?
- तो तुम्हारे पास ही किदर है? दो टाइप का माल सप्लाई करता है तुम, एक सपाटबयानी का पाउडर में दो चुटकी सरोकार मिलाता और दूसरा छोटा-छोटा पाउच में वन लाइनर मसखरी मार के बेचता है.
- और ये तेरा विट शिट है. तेरा आइरनी पर सबको हैरानी है. अपुन इदर गैंग में नया लोक भर्ती किया- ज्ञानू दादा, सुबू दादा सारे गैंग का लेडीज़-जेंट्स सब लोक को इन्वाईट किया. उदर मस्त आइटम डांस दिखाया..और बोले तो..व्यंग्य का फार्मूला पे एक बड़ा सेमीनार भी किया. अभी ‘मठवा’गाँव  में अपुन लोक सारा दादा लोक का फार्मूला का मंथन कर के पुराने व्यंग्य से नया माल तैयार करेगा.
- अब रहने भी दे, इदर भी विट, आइरनी, ह्यूमर का फुल सप्लाई है. इसमें सरोकार भी मिलाके ज्ञानू भाई के ख़ास फार्मूले से प्योर व्यंग्य बनाता है अपुन लोग. ऐसी चढ़ती, ऐसी चढ़ती कि पुरस्कार लेके ईच नीचे उतरती.
- तो वो बना के करेगा क्या? इदर तिकड़ी गैंग के आगे तुमारा औकात क्या. इदर ऊपर से नीचे तक सारा मामला सेट...बिंदास आत्ममुग्ध माफिक चल रेला है समझो...अपुन के पास बड़ा तोप भी है और छोटा मशीनगन भी. ऐतिहासिक परम्परा का तलवार भी है और तेज धार छुरियाँ भी. ये सब तो बरोबर, कौन बड़ा भाई बोल के- सर्टिफिकेट/सम्मान भी तो अपुन ही बाँटते.
- तुम सब उदर अपना मठवा गाँव में बैठ के आपस में कलेस करता, अपुन लोग इदर वैसेईच वलेस करता. आने वाला वखत में हम व्यंग्य का वास्ते अपना स्पेशल अभिधा-व्यंजना, फार्मेट, विषय, भाषा, मुहावरे, हास्य, सरोकार बगैरा ही नहीं, सम्मान भी खुद ही बना लेगा.
हमारे पास तो अपना आवाहन गीत भी है, जिसकू हम व्यंग्य पथ के राही, बढ़ेंगे आगे गाते-
सुनो-
सम्मान चाहे हों पड़े,
ललचायें इतने हों बड़े,
मानपत्र शाल भी
मांग मत मांग मत मांग मत
व्यंग्यपथ, व्यंग्यपथ, व्यंग्यपथ
तू भी जमेगा कभी
तू भी मचेगा कभी
तू न हटेगा कभी
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ
व्यंग्यपथ, व्यंग्यपथ, व्यंग्यपथ
ये ग़ज़ब का दृश्य है
व्यंग्यकार यों अस्पृश्य है.
अभिधा से भी, व्यंजना से भी
लथपथ, लथपथ, लथपथ
व्यंग्यपथ, व्यंग्यपथ, व्यंग्यपथ

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