पड़ोसियों की प्रवृतियाँः एक अध्ययन



पड़ोसी आम-तौर पर उस प्राणी या वस्तु को कहते हैं, जो आपके पड़ोस में रहता हो। हमारे पड़ोसियों में मनुष्यों के अलावा कई प्रकार के जीव-जन्तु भी शामिल होते हैं। जीवों के सिवा आपके पड़ोसी देश भी होते हैं, ग्रह-नक्षत्र भी, जंगल-पहाड़, गाँव-नगर, मुहल्ले-टोले यानी कि आपके सिवा हर शै आपका पड़ोसी है। फिर भी कुछ पड़ोसी निकट माने जाते हैं, जैसे ग्रहों-उपग्रहों में मंगल और चंद्रमा, देशों में पाकिस्तान और चीन, पक्षियों में गौरेया, कौआ या मैना, पशुओं और कीट-पतंगों में कुत्ते, बंदर, छिपकली, चूहे और मक्खी-मच्छर(?)। फिर भी आप अक्सर सिर्फ अपने निकट रहने वाले आदमी को ही पड़ोसी समझते हैं। ये बात नज़रअंदाज़ कर देते हैं कि सभी पड़ोसियों में काफ़ी समानताएँ पाई जाती है, चाहे वो आदमी हो या चिडि़या या कोई देश।

पड़ोसी से अच्छे या मधुर संबंध होना आम तौर पर अच्छी बात मानी जाती है। कुछ धर्म-ग्रंथ भी इस बात के लिए उकसाते हैं। ईसाई धर्म तो ऐसा है कि बाकायदा अपने पड़ोसी से इश्क करने का निर्देश देता है। लेकिन हम सब जानते हैं कि ऐसा हमेशा संभव नहीं होता। यह मुआमला एक तो इस बात पर निर्भर करता है कि पड़ोसी है कौन और दूसरा इस पर कि वो कैसा है। कभी-कभी पड़ोसी एक महिला होता है। इस विशेष स्थिति में आप उसे पड़ोसन कहते हैं। कई बार यह पड़ोसन सुंदर होती है और आप धर्म-ग्रंथों के पड़ोसियों से प्यार करने वाले निर्देशों पर अमल करने को बेचैन हो उठते हैं। पर अक्सर यह इसी वजह से संभव नहीं हो पाता कि वह पड़ोसन होती है और आपकी पत्नी और अपने पति की कड़ी निगहबानी में रहती है। इस स्थिति की कल्पना आप विपरीत दिशा से भी कर सकते हैं, यानी जब आपका पड़ोसी एक सुदर्शन पुरुष हो और आप स्वयं एक महिला। मेरा अनुमान है कि ऐसी स्थिति में भी पड़ोसी-प्रेम वाले धार्मिक निर्देश का पालन उतना ही कठिन होता होगा, क्योंकि निगहबानी वाली समस्या तो इस मामले में भी ज्यों-की-त्यों बनी रहेगी।

जैसा मैंने ऊपर कहा कि पशु-पक्षियों में भी कई हमारे पड़ोसी, बल्कि निकट पड़ोसी होते हैं। कुत्ते-बिल्ली तक तो ठीक है, पर शायद मच्छरों को पड़ोसी कहने में आपको संकोच हो, क्योंकि आप झट कहेंगे कि वो तो हमारा खून चूसता है। पर ग़ौर कीजिए तो क्या आपके कई मानव पड़ोसी भी ऐसा ही नहीं करते। इसी प्रकार आप चूहे या छिपकली या तिलचट्टे के समानांतर मानव पड़ोसी की पहचान कर सकते हैं, क्योंकि कई पड़ोसियों में आपकी चीज़ों को कुतरने, आपके घर में बेखौफ़ घूमने और वक़्त-बेवक़्त ध्वनि प्रदूषण फैलाने की प्रवृत्ति पाई जाती है। पड़ोसियों की प्रवृत्तियों का अध्ययन करते ही आप जान जाएंगे, जैसे मैं जान गया हूँ कि पड़ोसियों के संदर्भ में स्थूल जगत और प्राणी जगत में जियादा फ़र्क नहीं है।

अपने मानव पड़ोसी से प्यार करने का इरादा करने से पहले उसके मिज़ाज का अध्ययन कर लें क्योंकि पड़ोसी हमेशा प्यार ही करने लायक नहीं होता। यदि आपके पड़ोसी की प्रवृतियाँ आवारा कुत्ते, बंदर, चूहे या मच्छर से मिलती-जुलती हैं तो ज़ाहिर है आप प्यार करने की बजाय उसे पिछवाड़े की दिशा में लतियाना, डंडे से धमकाना, जहरीली गोली से लंबी नींद सुलाना या चपतियाना चाहेंगे। कोई-कोई पड़ोसन ठीक बिल्ली की भाँति सतर्क और चालाक हो सकती है और आपको कोई मौका दिए बिना आप समेत कुछ भी झपट ले सकती है। क्या ठीक सामने वाले फ्ऱलैट में रहने वाला कोई-कोई पड़ोसी आपको उस बंदर की याद नहीं दिलाता जो बालकनी के रास्ते आके आपकी फ्रिज़ से अपनी पसंद की चीज लेकर इत्मीनान से आपकी ही बालकनी में चखता, खाता या फेंकता है। दोनों में फ़र्क सिर्फ इतना है कि आपका पड़ोसी यही काम सामने के दरवाजे से आकर करता है और फ्रिज़ से ली गई अपनी प्रिय वस्तु को अपने निजी घर में जाकर ग्रहण करता है। कुत्ता हमारा सबसे निकटतम और प्रिय पड़ोसी जानवर है इसलिए वह अपने मानव पड़ोसियों के स्वभाव पर खासा प्रभाव डालता है। मान लीजिए किसी दिन आपने किसी पड़ोसी को पहली बार घर पधारने पर लज़ीज़ नाश्ता कराया और उसके बाद वो हर शाम आपके दफ्ऱतर से लौटने के वत्तफ़ आपके दरवाजे पर ही मिलने और आपके साथ ही गृह-प्रवेश करने लगा, तो ऐसे पड़ोसी के प्रति अपने प्रेम संदेश को आप घर के किस ताक पर रखना चाहेंगे? अब ये भी मान लें कि एक दिन वो ताक आपको मिल गई और लिहाज छोड़कर आप अपनी वाली पर आ गए पर उधर से गुर्राहट और भौंक सुनाई पड़ी तो क्या आप भी इस प्रिय पशु की तजऱ् पर ही जवाब देंगे?

आपके पड़ोस में, आप ध्यान ना भी दें तो, कई पक्षी रहते हैं। इनमें एक नन्हीं प्यारी सी चिडि़या ऐसी है, जो अपने नन्हें-मुन्नोंं के साथ रहती तो कहीं आस-पास ही है, पर अपने बाप का घर समझती है आप ही के घर को। हर सुब्ह वो बिना कालबेल दबाए रोशनदान के रास्ते आपके बेडरुम तक आ जाती है, और अपने चुरमुनों समेत लगातार चीं-चीं करती है। अगर आप भोर की मीठी नींद में डूबे हों तो ये कोरस गान आपको खासा नागवार गुज़र सकता है। इस चिडि़या से मिलती-जुलती कुछ पड़ोसनें भी आम मिलती हैं, जो आपके घर को अपने बाबुल के घर का एक्सटेंशन मानते हुए जब जी चाहे अपने निठल्ले दिन काटने अपने दो-चार चुरमुनों के साथ आ धमकती हैं। आप नारी हो या पुरुष, गौरेया-प्रजाति की इन पड़ोसनों की चीं-चीं पर जलते-भुनते हुए भी उन्हें दाने खिलाते या डालते हैं। पक्षी-प्रवृति पड़ोसियों में कुछ काग-प्रवृति भी हो सकते हैं। अपनी कर्कश आवाज से आपको चौंका देना और वक़्त -बेवक़्त कान खाना, आँखें और गर्दन मटकाना, पूरी ढीठता के साथ आपकी चीजें झपट लेना या महज़ कोयले-से रंग का होना आदि बातें आपको इस पड़ोसी को प्यार करने से रोकती होंगी। इसी तरह कुछ अप्रवासी संतनुमा प्राणी साल में कुछ दिनों के लिए आपके पड़ोसी बन जा सकते हैं, जो आपको हंसों की याद दिलाएँ। भले से दिखने वाले ये जीव एकदम खाली होने की वज़्ह से आए दिन आपके मेहमान बनकर आपके सीमित संसाधनों पर यों हमला करते हैं कि आप शरद जोशी के स्वर और अपने अंदाज़ में आर्तनाद कर उठें कि अबे ओ पड़ोसी के बच्चे! तू कब जाएगा आखिर। वो एक दिन चला भी जाता है पर अगले साल फिर आपके पड़ोस को आबाद करने के डरावने आश्वासन के साथ।

यदि आप अपने निकट पड़ोसी की तुलना जानवरों से न कर देशों से करना चाहें तो संभावना है कि अपने देश के कुछ निकट पड़ोसी देशों की तरह आपका नजरिया भी कुछ ऐसा हो कि प्रकट में राजनयिक किस्म की मिठास रहे और मन में उसपर हमला कर देने की चाह। मान लीजिए आपके पड़ोसी का मिजाज़ पाकिस्तान सरीखा है और वो आपके घर की सीमाओं पर कूड़ादि की बमबारी करता है या अपने आतंकवादियों-से बच्चों को सीमा से लगे इलाके या सीधे आपके बरामदे में ही मनचाही उछल-कूद करने को भेज देता है तो आप क्या करेंगे? उसे वार्ता के लिए आमंत्रित करेंगे। फ़र्ज़ कीजिए आपने अपने ड्राइंग रूम को आगरे का दर्ज़ा देते हुए उसे शांति वार्ता के लिए बुलाया। वो आ भी गया, मगर अकड़ा हुआ आया और कुछ जि़यादा ही अकड़ा हुआ लौट गया, तो भी क्या आप उससे प्यार ही करने की फ़िराक में लगे रहेंगे?

देशों की बात छिड़ी है तो ये भी हो सकता है कि कोई पड़ोसी आपके लॉन में अतिक्रमण कर सब्जी बो दे और आपकी आपत्ति के जवाब में अपने आठ बच्चों की फौज के दम पर धमकाने के काम आने वाली दीगर चीज़ें, मसलन फड़कते बाजू, बड़ी-बड़ी आँखें वगैरह दिखाकर आपको चीन की याद दिला दे। अब आपके पास अपने दो बाजुओं और इकलौती बीवी के सिवा कोई नहीं तो आप शांति, पंचशील या पड़ोसी-पड़ोसी भाई-भाई जैसा कोई नारा देकर प्रेम-प्रस्ताव भेजेंगे या किसी मुहल्ला-समिति या पुलिस में शिकायत करेंगे? या कुछ भी नहीं करेंगे और लॉन में खिंची रेखा को नियंत्रण-रेखा घोषित कर आत्म-समर्पण कर देंगे?

रूस और अमरीका हमारे ऐसे पड़ोसी देश हैं जो भौगोलिक निकटता के मोहताज नहीं। आपके घर से भी कुछ गलियाँ दूर आपको ऐसा कोई पड़ोसी मिल जाएगा, जो अपने क्रिया-कलापों से आपको एकदम अपने घर में घुसा हुआ प्रतीत होगा। ये प्राणी आपके मुहल्ले के सप्लाई के सारे ठेके ले लेता होगा और केबल, दूध या अखबार वगैरह तक आपकी आसान पहुँच के बीच आ खड़ा होता होगा। यह शख्स मुहल्ले की चिंतन प्रणाली पर भी काबि़ज होगा और चाहता होगा कि मुहल्ले की व्यवस्था खुली हुई हो और व्यावसायिक स्तर पर ही काम करे। या फिर ये भी हो सकता है कि मुहल्ले के किसी कोने में एक चिंतन का अखाड़ा गुजरे हुए सोवियत रूस की भाँति हो और आपके मुहल्ले के सारे तथाकथित बुद्धजीवी उसी के सुर में चीखते-चिल्लाते हों। आपके यहाँ बात-चीत की आचार-संहिता वो ही तय करते हों और कुछ स्थापित मानदंडों का पालन कराते हों। आप इस जि़यादती के खिलाफ़ कुछ कहना चाहते हों तो शोर मचाकर आपको चुप कर देते हों और दक्षिण-उत्तर या कोई और पंथी करार देते हों।

ग्रह-उपग्रहों की बात करें तो आपका कोई पड़ोसी आपको चंद्रमा की याद तो दिला ही सकता है। संभव है यह प्राणी हर रोज अपने चेहरे से थोड़ा-थोड़ा पर्दा हटाता जाय और पंद्रहवें दिन जब अपनी संपूर्ण छवि दिखाए तो आप सन्नाटे में आ जाएँ। ये भी हो सकता है कि आँख, नाक और होंठ उसके चेहरे पर ऐसी आकृति बनाते हों कि आपकी कल्पना चरखा कातती बुढि़या देख ले। बाकी वो शाश्वत सोलह कलाओं वाला चौदहवीं का चाँद तो है ही, जिसका मज़ा कोई भी पड़ोसन आपकी पत्नी के मुकाबले आपको दे सकती है। एक पड़ोस ऐसा भी हो सकता है, जिसके बारे में आपको संदेह हो कि वहाँ मानव जाति रहती है, पर प्रत्यक्ष कोई प्रमाण न दिखता हो। इस मंगल ग्रह के मुकाबले कोई ऐसा पड़ोसी भी हो सकता है जिसका नाम ही मंगल सिंह हो और एकदम से दस्यु प्रवृति का हो। आपके पड़ोस की आकाश-गंगा में सौर मंडलों की तरह कई गुट होंगे, जिनमें एक नेता के गिर्द कुछ लोग परिक्रमा करते हों और आप उनके गुरुत्वाकर्षण सीमा से बच कर चलना पसंद करें। साथ ही पूरी संभावना है कि पड़ोस में एक ब्लैक-होल हो जिसमें--------।

पशु-पक्षियों, देश-नगरों या ग्रह-नक्षत्रें के अलावा कुछ पड़ोसियों का मिज़ाज वनस्पतियों के सदृश भी संभव है। आपने वो पुराना गीत सुना होगा, ------- जो मैं होती राजा--- बेला चमेलिया--- लिपट रहती राजा तेरे बंगले पर--- और जिसका मुखड़ा है, ---- नज़र लागे राजा तोरे बंगले पर--- तो इन महानुभाव की नज़र आपके बंगले पर होती है और बाँहों में बंगले से लिपट रहने की लिप्सा। कुछ बरगदीय प्रवृति के पड़ोसियों की कृपा की छाँव आपके घर पर इस कदर बनी रहती है कि आपका दम घुटने लगता है। ये सात्विक लोग अपनी चेतना से आपकी बुद्धि को आलोकित कर आपका जीवन सुधारे बिना दम नहीं लेंगे, ऐसा उनकी मिशनरी उत्तेजना से साफ मालूम होता है। इन वनस्पतिय पड़ोसियों में औषधिय गुण भी पाए जाते हैं। ये लोग आपकी हर साँस पर नज़र रखते हैं और मामूली छींक को नज़ले में बदलने तक अपने घरेलू नुस्खों से जबरन आपका इलाज करते हैं। ऐसे ही कुछ और प्राणी आपके खान-पान, चाल-ढाल और शारीरिक संरचना पर भी धावा बोल देते हैं और आप उनके डर से सुब्ह-सुब्ह सड़कों पर दौड़ते-हाँफते, या छत पर अपने जि़स्म को आड़ा-तिरछा खींचते-सिकोड़ते देखे जाने लगते हैं, जिसे ये लोग कोई विशिष्ट किस्म की योग-मुद्रा बताते होंगे। यही नहीं अपनी चटोरी जीभ के खिलाफ़ जाकर आप साग-सब्जी उबाल कर या कच्चा चबाने की कवायद भी करने लगते हैं, हालाँकि सच्ची तमन्ना आपके मन में इन वानस्पतिक आतंकवादियों को ही उबालने और कच्चा चबाने आदि के लिए ही उठ रही होती है।

पड़ोसी मानव-जीवन का सार्वभौम सत्य है। जब से आदमी एक जगह टिक कर रहने लगा, पड़ोसी भी उसकी बगल में आ टिके। ऊपर बताई गई प्रवृतियों के कारण आदमी और पड़ोसियों में ठनी रही और धर्म, कानून, प्रशासन आदि को बीच-बीच में उनके बीच आना पड़ा। पड़ोसियों से प्रेम-व्यापार के लिए माहौल आज भी बहुत उपयुक्त नहीं, जैसा कि आपने देखा। पर पड़ोसियों पर छींटा-कशी करने से पहले आप इतना जरूर ध्यान में रख लें कि आप भी सापेक्ष रूप से किसी भी पड़ोसी के पड़ोसी हैं और वो भी आपमें वो सारे गुण ढूँढ़ सकता है जो अभी-अभी आपने उसमें ढूँढ़ा। सो ये गुण ढूँढ़ने की बजाय किसी तरह उस प्यार का रास्ता ढूँढे़ं, जिसकी ओर धर्म और नीति-शास्त्रों ने इशारा किया है ताकि दुनिया स्वर्ग बने और हम जीते-जी स्वर्गवासी हो उसका मजा ले सकें।

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