अंधेर नगरी रिटर्न्स - ये नाटक का शीर्षक था.



भारतेंदु का क्लासिक'अंधेर नगरी - चौपट राजा' हर युग में प्रासंगिक है. आप शब्द और सन्दर्भ बदल दीजिये, उन्हीं घटनाक्रमों में सब नया लगाने लगता है. इसका रूपांतरण करते हुए मुझे सचमुचबड़ा मज़ा आया. जिस पात्र को पकड़ता उसका सामयिक हमशक्ल सामने होता. महंत और उसके चेलों में न चाहते हुए भी आज के बाबा-चेलों का स्वर आ जाता है. राजा का ध्यान आते ही कुछ ख़ास अक्श बनते हैं. मूर्खता और कठपुतलीपन में थोड़ी सी नपुंसकता मिला कर हमारा आज का राजा तैयार था. रहा मंत्री तो सदियों से सारे खेल वही रचता आया है. निर्देशक राजीव मेहरा ने इन सब चरित्रों के रूप गढ़े और एक सदी से भी पुराने नाटक को एकदम नया सन्दर्भ मिल गया.  

नाटक गीत-संगीत से भरपूर है. मूल गीतों में भ्रष्टाचार की जो परतें खुलती हैं उसी में वर्तमान दौर की झलकियाँ भी हैं. मैंने गीतों को ताज़ा प्रसंगों से जोड़ भर दिया. अमित घोरपडे ने उनकी नई धुनें बना दीं और रिहर्सल में पात्रों की जुबां पर शब्द लोकप्रिय गीतों की तरह थिरकने लगे.

कुल मिला  कर इस नाटक को प्रस्तुत करने में बेहद मज़ा आया और कुछ सार्थक करने का अहसास भी रहा.

कुछ झलकियाँ यहाँ पर:-









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