हमसे ही है दुनिया, हमें ही जीना मुश्किल
दोस्तों, सभी अपनी-अपनी शैली में जीते हैं, पर सलाहें तो ली ही जाती हैं दोस्तों से। हमारी दुनिया तेजी से बदल रही है, हम भी बदल रहे हैं, पर अचानक कहीं ठिठक जाते हैं, रुक कर देखने लगते हैं कि सही रास्ते पर चल तो रहे हैं।
अकेलापन है, बेगानापन है, कई बार लगता है हमें कोई समझ नहीं रहा, क्या करें?
सलाहें देने वालों, रस्ता दिखाने का दावा करने वालों की कमी नहीं। पर आपका मन भटक जाता है, तय नहीं कर पाते कि क्या सही है क्या गलत । गहरे भारतीय संस्कारों पर कहीं बदलती दुनिया के नए संस्कार पूरी तरह नहीं चढ़ पा रहे। मुश्किल ।
दुनिया को बदलने के जमाने गए, अब युवा लोग जमाने के सांचों में आसानी से ढल कर अपनी ज़िन्दगी आसान पा रहे हैं। सो दुनिया कुछ अजीब सी शक्तियों के दवाब में अपने आप बदल रही है और कुछ यूं बदल रही है कि बदलने वाले आदर्श के रूप में सामने नहीं आते। हम बदलती दुनिया को देखते परखते धीरे-धीरे खुद ही बदल जाते हैं।
इस उलझन से निकलने की ज़रूरत भी महसूस नहीं होती, जबतक हम चारों तरफ़ भरी-पूरी दुनिया में अचानक अकेले पड़ जाते हैं, वरना रफ़्तार हमें सोचने तक का मौका नहीं देती।
मैं कुछ ऐसी ही बातें सामने रखूंगा, जिनसे मुझे ऐसे हालातों में खुल कर जीने में मदद मिली।
दोस्तों! कभी एक दम छोटे बच्चों की मुस्कान देखी है? बड़े होने के बाद वैसा मुस्कराना कठिन है। पर महसूस तो कर सकते हैं। एक छोटे बच्चे पर रोज़ नज़र केंद्रित करें। उसकी मुस्कान आपको ज़िन्दगी से गहरे जोड़ देगी।
कविताएं उबाऊ लगती हैं? उर्दू ग़ज़ल समझ में नहीं आती? छोड़ दें। चुटकुले तो पसद आते हैं, नए-नए ढूंढें और पढ़ें, सुनें और सुनाएं। हास्य-व्यंग्य की पत्रिकाएं खोजें।
संगीत? नए एलबम ऊबाने लगे हैं? हिम्मर कर शास्त्रीय सगीत सुनें, नहीं जमता तो थोड़ा हल्का कर लें, ग़ज़ल, ठुमरी, फ़्यूज़न या महज़ लोक संगीत।
कभी सोचा है कि आप चित्रकारी कर सकते हैं। 'तारे ज़मीं पर' को याद कर एक कैनवस उठा कर जुट जाएं। ऐब्सटरैक्ट, कार्टून जो भी बने, बना कर ग़ौर से देखें और दिखाएं।
ये तो सब आम सलाहों से प्रेरित रास्ते हैं। मैं आगे अपने अनुभव सुनाऊंगा।
अकेलापन है, बेगानापन है, कई बार लगता है हमें कोई समझ नहीं रहा, क्या करें?
सलाहें देने वालों, रस्ता दिखाने का दावा करने वालों की कमी नहीं। पर आपका मन भटक जाता है, तय नहीं कर पाते कि क्या सही है क्या गलत । गहरे भारतीय संस्कारों पर कहीं बदलती दुनिया के नए संस्कार पूरी तरह नहीं चढ़ पा रहे। मुश्किल ।
दुनिया को बदलने के जमाने गए, अब युवा लोग जमाने के सांचों में आसानी से ढल कर अपनी ज़िन्दगी आसान पा रहे हैं। सो दुनिया कुछ अजीब सी शक्तियों के दवाब में अपने आप बदल रही है और कुछ यूं बदल रही है कि बदलने वाले आदर्श के रूप में सामने नहीं आते। हम बदलती दुनिया को देखते परखते धीरे-धीरे खुद ही बदल जाते हैं।
इस उलझन से निकलने की ज़रूरत भी महसूस नहीं होती, जबतक हम चारों तरफ़ भरी-पूरी दुनिया में अचानक अकेले पड़ जाते हैं, वरना रफ़्तार हमें सोचने तक का मौका नहीं देती।
मैं कुछ ऐसी ही बातें सामने रखूंगा, जिनसे मुझे ऐसे हालातों में खुल कर जीने में मदद मिली।
दोस्तों! कभी एक दम छोटे बच्चों की मुस्कान देखी है? बड़े होने के बाद वैसा मुस्कराना कठिन है। पर महसूस तो कर सकते हैं। एक छोटे बच्चे पर रोज़ नज़र केंद्रित करें। उसकी मुस्कान आपको ज़िन्दगी से गहरे जोड़ देगी।
कविताएं उबाऊ लगती हैं? उर्दू ग़ज़ल समझ में नहीं आती? छोड़ दें। चुटकुले तो पसद आते हैं, नए-नए ढूंढें और पढ़ें, सुनें और सुनाएं। हास्य-व्यंग्य की पत्रिकाएं खोजें।
संगीत? नए एलबम ऊबाने लगे हैं? हिम्मर कर शास्त्रीय सगीत सुनें, नहीं जमता तो थोड़ा हल्का कर लें, ग़ज़ल, ठुमरी, फ़्यूज़न या महज़ लोक संगीत।
कभी सोचा है कि आप चित्रकारी कर सकते हैं। 'तारे ज़मीं पर' को याद कर एक कैनवस उठा कर जुट जाएं। ऐब्सटरैक्ट, कार्टून जो भी बने, बना कर ग़ौर से देखें और दिखाएं।
ये तो सब आम सलाहों से प्रेरित रास्ते हैं। मैं आगे अपने अनुभव सुनाऊंगा।
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Happy new year!